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दीवानी अदालतों के आर्थिक क्षेत्राधिकार बढ़ाने को अभी तक अधिसूचित क्‍यों नहीं किया? अमित साहनी की याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब

Advocate Amit Sahni Delhi High Court seeks Centre stand on Advocate Amit Sahni plea for increasing pecuniary jurisdiction of civil courts

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्‍ट्रीय राजधनी की दीवानी अदालतों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को तीन लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये करने की याचिका पर सोमवार को केंद्र से जवाब तलब किया. हाईकोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी (Advocate Amit Sahni) की एक याचिका पर केंद्र सरकार के वकील से इस मुद्दे पर निर्देश लेने को कहा. मामले की अगली सुनवाई 19 मई को होगी.

याचिकाकर्ता अमित साहनी ने सूचित किया कि सीमा बढ़ाने का निर्णय पहले ही उच्च न्यायालय द्वारा अपने प्रशासनिक पक्ष में लिया जा चुका है, लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी, केंद्र ने अभी तक इसे अधिसूचित नहीं किया है.

पिछले साल, उच्च न्यायालय ने इसी मुद्दे पर याचिकाकर्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि एक पूर्ण अदालत ने 9 फरवरी, 2022 को दीवानी अदालतों के आर्थिक अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के लिए एक निर्णय लिया था और उस संबंध में 7 मार्च, 2022 को उच्च न्यायालय द्वारा संबंधित मंत्रालय को एक कम्‍युनिकेशन भेजा गया था.

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अमित साहनी ने तर्क दिया था कि 3 लाख रुपये की वित्तीय सीमा दीवानी अदालतों के लिए बहुत कम है, जिसके परिणामस्वरूप जिला अदालतों में बड़ी संख्या में मामले दायर किए जाते हैं, जिनका अधिकार क्षेत्र 3 लाख रुपये और अंत में 2 करोड़ रुपये तक होता है. उच्च न्यायालय ने तब साहनी की याचिका का निस्तारण किया था, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रीय राजधानी में तैनात सिविल न्यायाधीशों का आर्थिक अधिकार क्षेत्र समय-समय पर 25,000 रुपये से 1 लाख रुपये और उसके बाद 3 लाख रुपये साल 2003 में बदला गया है, लेकिन उसके बाद नहीं.

वकील एवं सोशल एक्टिविस्‍ट अमित साहनी ने अपनी वर्तमान याचिका में कहा कि केंद्र को बिना किसी तार्किक तर्क के एक पूर्ण अदालत के फैसले पर यूं ही बैठे रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और दीवानी न्यायाधीशों के आर्थिक अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने की जरूरत है ताकि उनके सामने आने वाले गतिरोध और मामलों का बोझ उन पर कम पड़े.

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