दिल्ली: 2023-24 देश के लिए चुनावी वर्ष कहे जा सकते हैं. इस साल 2023 में दस राज्यों में चुनाव होने प्रस्तावित हैं, जिनमें से 5 राज्यों में हो चुके हैं और पांच में होने वाले हैं. वहीं अगले साल 2024 में सात राज्यों के साथ लोकसभा के चुनाव भी होने हैं. अर्थात दो वर्षों में १८ चुनाव! इनके साथ ही कई विधानसभाओं और लोकसभा की कुछ सीटों के लिए उप चुनाव भी होंगे. मतलब यह कि आने वाले दिनों में देश चुनावों में व्यस्त रहेगा.
पर ऐसे समय में जब देश-दुनिया अनेक चुनौतियों से दो-चार हो रही है, पूरी मानवता कोविड और यूक्रेन युद्ध के दुष्प्रभावों से जूझ रही है और जिस समय देश सघर्षों से लड़कर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में लगा है, क्या ये उचित लगता है कि सारा देश और प्रशासनिक तंत्र चुनावों की व्यवस्था में ही लग जाए? क्या यह उचित नहीं होगा कि सारे चुनाव एक बार में, एक साथ कराये जाएँ और बार-बार चुनावों पर होने वाले खर्च और व्यवधान से बचा जा सके?
एक साथ चुनाव कराने का एक मुख्य तर्क यह है कि इससे काफी समय और संसाधनों की बचत होगी. वर्तमान में, भारत में चुनाव चरणों में होते हैं, जिसकी प्रक्रिया कई महीनों तक चलती है. यह न केवल सरकार के सामान्य कामकाज को बाधित करता है बल्कि राजकोष पर बड़ा बोझ भी डालता है. एक साथ चुनाव कराने का मतलब होगा कि प्रक्रिया की अवधि और समग्र लागत को कम करना.
साथ ही सरकार की जवाबदेही में भी कमी आ जाती है. सरकार का ध्यान शासन से हटकर चुनाव प्रचार पर चला जाता है. एक साथ चुनाव कराने का मतलब होगा कि सत्ता में रहने वाली सरकार पूरे कार्यकाल के लिए लोगों के प्रति जवाबदेह होगी, जिससे अधिक बेहतर शासन की संभावना बढ़ेगी.