देश

जन्म लेते ही जिसे जिंदा दफ़ना दिया गया था, उसी ने ही दुनिया में किया अपनी बिरादरी का नाम रोशन

सुशील कुमार शर्मा, स्वतंत्र पत्रकार

पद्मश्री गुलाबो सपेरा और उनका कालबेलिया नृत्य दुनिया में आज जाना- पहचाना नाम है। गुलाबो राजस्थान की जिस घुमंतू आदिवासी समुदाय से है वहां लड़कियों को डांस कराने की मनाही थी. लेकिन पिता भैरूनाथ की प्रेरणा से उसने सांपों की खास शैली में नाचने को सपेरों के कालबेलिया डांस के रूप में दुनिया भर में पहचान दिलाई.

उल्लेखनीय है सात भाई -बहनों में सबसे छोटी गुलाबो को पैदा होने के पांच घंटे बाद ही जमीन में गाड़ दिया गया था,पर वह जिंदा रही और दुनिया भर में अपनी बिरादरी और देश का नाम रोशन किया. उसका अधिकांश जीवन सपेरा डांस और अपने समुदाय और संगीत के इर्द-गिर्द ही रहा है. उनके लिए कालबेलिया डांस और संगीत ही जीवन भर की पूंजी है. गुलाबो का कहना है कि यह डांस मेरे साथ ही जन्मा और आगे बढ़ा है.

समाज के लोगों ने उन्हें डांस करने के कारण समाज से निकाल दिया था. उसे समाज का कलंक तक कहा गया. इसके बावजूद उन्होंने डांस करना नहीं छोड़ा. संघर्ष के दिनों में वर्ष 1985 में जब वह पहली बार परफार्मेंस देने अमेरिका गयी तो कुछ दिन पहले ही उसके पिता का निधन हो गया था. इसके बावजूद वह अपने पिता की स्वप्रेरणा से अमेरिका जाकर न केवल परफार्म करने गयी बल्कि पूरी दुनिया में राजस्थान के लोकनृत्य कालबेलिया को नई पहचान दिलाई.

कभी उसे समाज का कलंक कहने वाले बिरादरी के लोग आज गुलाबो को समाज का गौरव मानते हैं जिसने घुमंतू आदिवासी समुदाय की बेटियों को डांस के बूते जीने का अधिकार व सम्मान दिलाया. गुलाबो ने कहा है कि वह जीवन में बहुत कुछ हासिल कर चुकी है इसलिए वह नई पीढ़ी को अनुभव लौटाने के लिए अजमेर में कालबेलिया डांस स्कूल खोलना चाहती है.

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