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जस्टिस सूर्यकांत को भारत का अगला मुख्य न्यायाधीश बनाने की प्रक्रिया शुरू

दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम की सिफारिश की है. इससे भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है. न्यायमूर्ति गवई 23 नवंबर, 2025 को 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर पदमुक्त होंगे.

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने हाल ही में मुख्य न्यायाधीश गवई को पत्र लिखकर स्थापित प्रक्रिया के अनुरूप अगले मुख्य न्यायाधीश के लिए उनकी सिफारिश मांगी थी. भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) द्वारा नियंत्रित होती है. एमओपी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति की रूपरेखा निर्धारित करता है. प्रक्रिया ज्ञापन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश, जिन्हें पद धारण करने के लिए उपयुक्त माना जाता है उन्हें अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में अनुशंसित किया जाता है.

इस परंपरा के अनुसार न्यायमूर्ति गवई के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सूर्यकांत को इस शीर्ष न्यायिक पद के लिए अनुशंसित किया गया है. राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक नियुक्ति के बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत 24 नवंबर, 2025 को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे और 9 फरवरी, 2027 तक लगभग 15 महीने का कार्यकाल पूरा करेंगे.

10 फरवरी, 1962 को जन्मे न्यायमूर्ति सूर्यकांत का न्यायिक और कानूनी करियर बेहद शानदार रहा है. सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति से पहले उन्होंने हरियाणा के महाधिवक्ता के रूप में कार्य किया और युवावस्था में ही उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा प्राप्त हुआ. वर्तमान में न्यायमूर्ति सूर्यकांत कई महत्वपूर्ण संस्थागत पदों पर कार्यरत हैं. वे रांची स्थित राष्ट्रीय विधि अध्ययन एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष हैं और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के पदेन कार्यकारी अध्यक्ष हैं.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत देश के शीर्ष न्यायिक पद पर दो दशकों के अनुभव के साथ आए हैं, जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण और लैंगिक समानता पर ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं. न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून को स्थगित रखा था और निर्देश दिया था कि सरकार की समीक्षा तक इसके तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज न की जाए.

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को रेखांकित करने वाले एक आदेश में उन्होंने चुनाव आयोग को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद सूची से बाहर किए गए 65 लाख नामों का विवरण सार्वजनिक करने के लिए प्रेरित किया. न्यायमूर्ति सूर्यकांत को यह निर्देश देने का भी श्रेय दिया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाए.

उन्होंने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन (ओआरओपी) योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए उसे बरकरार रखा और सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों द्वारा स्थायी कमीशन में समानता की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस सात-न्यायाधीशों की पीठ में थे जिसने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था.

वह पेगासस स्पाइवेयर मामले की सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा थे, जिसने गैरकानूनी निगरानी के आरोपों की जाँच के लिए साइबर विशेषज्ञों का एक पैनल नियुक्त किया था. उन्होंने यह भी कहा था कि राज्य को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में खुली छूट’ नहीं मिल सकती.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2022 की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा भंग की जाँच के लिए सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ​​​​की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी. उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों के लिए ‘न्यायिक रूप से प्रशिक्षित दिमाग’ की आवश्यकता होती है.

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