दिल्ली: डी ए वी सीनियर सेकेंडरी स्कूल नंबर 1 गांधीनगर में, दुर्गा पूजा, नवरात्रि और विजयदशमी पर्व का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया गया. इस अवसर पर विद्यालय के अध्यक्ष नरेश शर्मा, प्रबंधक गृजेश रस्तोगी, रामकिशोर शर्मा जी (अध्यक्ष एम सी डी शाहदरा जॉन पार्षद शकरपुर दिल्ली) , प्रधानाचार्य लखी राम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली प्रांत से सतीश शर्मा (सह-बौद्धिक प्रमुख दिल्ली प्रांत) उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ तत्पश्चात अंग वस्त्र द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया.
कार्यक्रम के प्रारंभ में सामाजिक विज्ञान के अध्यापक आलोक भारत ने मां दुर्गा पूजा, नवरात्रि और दशहरा के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किए. विजयादशमी, या दशहरा, वह त्योहार है जो नवरात्रि के बाद हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, क्योंकि इसी दिन भगवान राम ने अहंकारी रावण का वध किया था, और देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का अंत किया था. इस दिन रामलीला में रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं, और लोग शस्त्रों और आप्टा पेड़ की पत्तियों की पूजा करते हैं. यह त्यौहार अधर्म पर धर्म की जीत और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतिनिधित्व करता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध कर माता सीता को लंका से मुक्त कराया था, इसलिए इसे विजयादशमी भी कहते हैं. इसी दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, जिससे तीनों लोकों को मुक्ति मिली. लोग खुले मैदानों में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के बड़े पुतले बनाते हैं. फिर, राम, सीता और लक्ष्मण बने कलाकार आग के तीर से इन पुतलों पर वार करते हैं, जिससे ये पटाखों के साथ जल उठते हैं. क्षत्रियों के यहां शस्त्रों की पूजा की जाती है. शमी (छोटा पेड़) का पूजन किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अर्जुन ने अपने हथियार शमी वृक्ष पर रखे थे और विजय प्राप्त की थी.
इस दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन बहुत शुभ माना जाताहै. रामलीलाओं में राम और रावण के बीच के युद्ध का प्रदर्शन किया जाता है.महिषासुर रंभ नामक असुर और एक महिषी (भैंस) का पुत्र था, जिसने ब्रह्मा जी से वरदान पाकर देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था. सभी देवताओं के प्रयास विफल होने के बाद, उन्होंने देवी दुर्गा को जन्म दिया, जिन्होंने महिषासुर को नौ दिनों के युद्ध के बाद वध किया और उन्हें ‘महिषासुरमर्दिनी’ कहा जाने लगा. नवरात्रि का पर्व इसी विजय का प्रतीक है.महिषासुर ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या करके वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई भी देवता, दानव या मानव मार नहीं सकेगा. उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथों से ही हो सकती थी.
वरदान पाकर महिषासुर ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया और स्वर्ग पर आक्रमण कर इंद्र को हरा दिया, जिससे सभी देवताओं को खदेड़ दिया गया. देवताओं और मनुष्यों के लिए यह बड़ा कष्ट का काल था. सभी त्रस्त होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर विज्ञान आचार्य राजेश ने अपने विचार प्रस्तुत किया डॉ॰ हेडगेवार का जन्म १ अप्रैल, १८८९ को महाराष्ट्र के नागपुर जिले में पण्डित बलिराम पन्त हेडगेवार के घर हिन्दू वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था. इनकी माता का नाम रेवतीबाई था। माता-पिता ने पुत्र का नाम केशव रखा. केशव का बड़े लाड़-प्यार से लालन-पालन होता रहाउनके दो बड़े भाई भी थे, जिनका नाम महादेव और सीताराम था. पिता बलिराम वेद-शास्त्र एवं भारतीय दर्शन के विद्वान थे एवं वैदिक कर्मकाण्ड (पण्डिताई) से परिवार का भरण-पोषण चलाते थे।घर से कलकत्ता गये तो थे डाक्टरी पढने परन्तु वापस आये उग्र क्रान्तिकारी बनकर.
कलकत्ते में श्याम सुन्दर चक्रवर्ती के यहाँ रहते हुए बंगाल की गुप्त क्रान्तिकारी संस्था अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य बन गये. सन् १९१६ के कांग्रेस अधिवेशन में लखनऊ गये। वहाँ संयुक्त प्रान्त (वर्तमान यू०पी०) की युवा टोली के सम्पर्क में आये. बाद में कांग्रेस से मोह भंग हुआ और नागपुर में संघ की स्थापना कर डाली. मृत्युपर्यन्त सन् १९४० तक वे इस संगठन के सर्वेसर्वा रहे।केशव के सबसे बड़े भाई महादेव भी शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता तो थे ही मल्ल-युद्ध की कला में भी बहुत माहिर थे. वे रोज अखाड़े में जाकर स्वयं तो व्यायाम करते ही थे गली-मुहल्ले के बच्चों को एकत्र करके उन्हें भी कुश्ती के दाँव-पेंच सिखलाते थे. महादेव भारतीय संस्कृति और विचारों का बड़ी सख्ती से पालन करते थे। केशव के मानस-पटल पर बड़े भाई महादेव के विचारों का गहरा प्रभाव था. किन्तु वे बड़े भाई की अपेक्षा बाल्यकाल से ही क्रान्तिकारी विचारों के थे. जिसका परिणाम यह हुआ कि केशव हेडगेवार ने डॉक्टरी पढ़ने के लिये कलकत्ता गये और वहाँ से उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से प्रथम श्रेणी में डॉक्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की; परन्तु घर वालों की इच्छा के विरुद्ध देश-सेवा के लिए नौकरी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया.
डॉक्टरी करते करते ही उनकी तीव्र नेतृत्व प्रतिभा को भांप कर उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया. डॉ॰साहब ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिये नये-नये तौर-तरीके विकसित किये. हालांकि प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रान्ति और तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक अर्ध-सैनिक संगठन की नींव रखी। इस प्रकार 28/9/1925 (विजयदशमी दिवस) को अपने पिता-तुल्य गुरु डॉ॰ बालकृष्ण शिवराम मुंजे, उनके शिष्य डॉ॰ हेडगेवार, श्री परांजपे और बापू साहिब सोनी ने एक हिन्दू युवक क्लब की नींव डाली, जिसका नाम कालांतर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ दिया गया lसावरकर का राष्ट्र दर्शन ग्रन्थ (हिंदुत्व) जिसमे हिंदू की परिभाषा यह की गई थी-
आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका l
पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिंदू रीती स्मृता ll
इस श्लोक के अनुसार “भारत के वह सभी लोग हिंदू हैं जो इस देश को पितृभूमि-पुण्यभूमि मानते हैं”. इनमे सनातनी, आर्यसमाजी, जैन, बौद्ध, सिख आदि पंथों एवं धर्म विचार को मानने वाले व उनका आचरण करने वाले समस्त जन को हिंदू के व्यापक दायरे में रखा गया था. मुसलमान व ईसाई इस परिभाषा में नहीं आते थे अतः उनको इस मिलीशिया में ना लेने का निर्णय लिया गया और केवल हिंदुओं को ही लिया जाना तय हुआ, मुख्य मन्त्र था “अस्पृश्यता निवारण एवं हिंदुओं का सैनिकी कारण”. उन्होंने बताया की राष्ट्रीय स्वयंसेवक राष्ट्र सर्वोपरि की भावना का विकास करती है और संघ अनेक क्षेत्रों में कार्य कर रहा है जिसमें शिक्षा स्वास्थ्य आदि शामिल है उन्होंने शताब्दी वर्ष के विषय में बताया कि विजयदशमी पर सभी मंडलों में संचलनों का आयोजन किया जाएगासंगठन भारतीय संस्कृति और नागरिक समाज के मूल्यों को बनाए रखने के आदर्शों को बढ़ावा देता है और बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को “मजबूत” करने के लिए हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करता है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोपीय अधिकार-विंग समूहों से प्रारंभिक प्रेरणा मिली तत्पश्चात श्री राम किशोर शर्मा जी द्वारा संघ के 100 वर्ष पूर्ण होने पर सभी को बधाई दी गई तथा छात्रों को इस महोत्सव में भाग लेने के लिए प्रेरित किया गया. उन्होंने कहा विजयदशमी 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है. डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन अब एक लाख शाखाओं का लक्ष्य रख रहा है.
इस ऐतिहासिक अवसर पर अयोध्या में पहली बार पथ संचलन होगा और सरसंघचालक का उद्बोधन भविष्य की दिशा तय करेगा।संघ की स्थापना के समय डॉ. हेडगेवार का उद्देश्य स्पष्ट था कि हिंदू समाज को संगठित कर राष्ट्र को मजबूत बनाना. उन्होंने कहा था- हिंदू राष्ट्र की रक्षा के लिए स्वयंसेवकों का निर्माण आवश्यक है. यह दृष्टि आज भी प्रासंगिक है। विजयदशमी का उद्बोधन सरसंघचालक का वार्षिक संदेश स्वयंसेवकों के लिए दिशानिर्देशिका का कार्य करता है. पूरे वर्ष यह वक्तव्य संघ के कार्यों को दिशा प्रदान करता है, सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रीय एकता जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालता है. स्वयंसेवक इसे अत्यंत ध्यान से ग्रहण करते हैं, क्योंकि यह केवल भाषण नहीं, बल्कि संघ की वैचारिक यात्रा का सार है. अयोध्या में पहली बार विजयदशमी का कार्यक्रम आयोजित होगा, जहां राम पथ पर हजारों स्वयंसेवक मार्च करेंगे। संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले मुख्य उद्बोधन देंगे। यह स्थानांतरण प्रतीकात्मक है. अयोध्या, राम जन्मभूमि का प्रतीक, संघ की हिंदू एकता की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है.
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद नागपुर के मुख्य अतिथि होंगे, जो राष्ट्रीय स्तर पर इस आयोजन को गरिमा प्रदान करेगा. साथ ही उन्होंने अपने विद्यालय जीवन के विषय में छात्रों को अवगत कराया की किस प्रकार उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा को उजागर किया उन्होंने अध्यापकों को संबोधित करते हुए कहा की जो सम्मान शिक्षकों को मिलता है वह अन्य किसी भी संस्थान में किसी भी कार्य करने वाले को नहीं मिलता. उन्होंने कहा “अध्यापक छात्रों के छात्रों के अभिभावक हैं”. जो उनके उज्जवल भविष्य के लिए सदैव कामना करते हैं और उनको प्रेरणा देते हैं उनकी छाप छात्रों के जीवन पर उम्रभर रहती है तथा उन्हें का प्रतिबिंब वे अपने छात्रों में देखते हैं।उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली प्रांत सह बौद्धिक प्रमुख सतीश शर्मा ने अपने वक्तव्य में बताया कि किस प्रकार अगर 9 दिन की दुर्गा माता पूजा ,साधना, तप से दशवे दिन रावण मारा गया. शस्त्र पूजन के बारे में भी छात्रों को बताया गया की विजयदशमी के दिन शस्त्र पूजन क्यों की जाती है. सघं हमें सिखाता है देश भक्ति, “भला हो जिसमे देश का वह काम सब कर चलो “25सितंबर से 2अक्टूबर तक विद्या भारती स्वदेशी सप्ताह मानता है क्योंकि 25 दिसंबर से को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म दिवस है। उन्होंने बताया अपनी वेशभूषा भारतीय हो,अपनी मातृभाषा हिंदी का प्रयोग करें ताकि पता चल सके कि हम सब हिंदू हैं.
रामायण से संबंधित एक छोटी सी कथा के माध्यम से छात्रों को समझाया कि कैसे रावण और मंदोदरी के नाम को भी रा म बनाया जा सकता है उन्होंने छात्रों को बताया कि अपने जन्मदिन पर दीपक जलाना हमारी परंपरा है मोमबत्ती बूझकर जन्मदिन मनाना पाश्चात्य परंपरा है जिसको हमें नहीं मानना चाहिए. कोई भी त्यौहार अपनी परंपराओं के अनुसार मानने से हमारे देश का गौरव बढ़ता है इसी के साथ भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे पूरे सभागार में गूंज उठे. इसके बाद श्रीमान प्रबंधक महोदय गृजेश रुस्तगी जी द्वारा दशहरे के महत्व को समझाते हुए छात्रों को परीक्षा के लिए शुभकामनाएं दी. कार्यक्रम का मंच संचालन हिंदी प्रवक्ता श्रीमान आशुतोष जी द्वारा बहुत सुंदर ढंग से किया गया.
इस अवसर पर विद्यालय के प्रबंधक श्रीमान गिरिजेश रस्तोगी जी ने छात्रों को बताया की परीक्षा में आपको बहुत अधिक मेहनत करनी है और अच्छे नंबर लाने हैं या नहीं आप अधिक से अधिक मेहनत करने का संकल्प लें और 100% मार्क्स प्राप्त करने का प्रयास करें.तत्पश्चात उप प्रधानाचार्य श्रीमान लखीराम जी ने आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन किया तथा छात्रों को संबोधित करते हुए कार्यक्रम की प्रशंसा की तथा छात्रों को परीक्षा संबंधी आवश्यक बातों से अवगत कराया और जीवन में आगे बढ़ाने की कामना करते हुए शुभकामनाएं दी.