दिल्ली: एनआईए कोर्ट ने 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले में फैसला सुनाया. अदालत ने सबूतों के आभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. फैसले के दौरान कोर्ट में सभी आरोप मौजूद रहे. फैसला सुनाए जाने के बाद आरोपियों के चेहरे खिल उठे. उन्होंने कहा की सत्य की जीत हुई है.
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह तो साबित कर दिया कि मालेगांव में विस्फोट हुआ था, लेकिन यह साबित नहीं कर पाया कि उस मोटरसाइकिल में बम रखा गया था. अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि घायलों की उम्र और कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी की गई थी.
NIA Court announces verdict in 2008 Malegaon bomb blast case | Prosecution proved that a blast occurred in Malegaon, but failed to prove that a bomb was placed in that motorcycle. The court has come to the conclusion that the injured people were not 101 but 95 only, and there was… https://t.co/m6cRImNKDG
— ANI (@ANI) July 31, 2025
महाराष्ट्र में 2008 मालेगांव ब्लास्ट मामले में विशेष अदालत का फैसला आ गया. 17 साल के इंतजार के बाद आज फैसला आया. अदालत ने अभियोजन और बचाव पक्ष की ओर से सुनवाई और अंतिम दलीलें पूरी करने के बाद 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
अदालत ने कहा कि सुनवाई अप्रैल में समाप्त हो गई थी, लेकिन मामले की विशाल प्रकृति को देखते हुए जिसमें एक लाख से अधिक पृष्ठों के साक्ष्य और दस्तावेज शामिल हैं. फैसला सुनाने से पहले सभी रिकॉर्डों को देखने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता है. मामले के सभी आरोपियों को फैसले के दिन अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है.
अदालत ने यह भी चेतावनी दी है कि उस दिन अनुपस्थित रहने वाले किसी भी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इस मामले में कुल सात व्यक्ति मुकदमे का सामना कर रहे हैं, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय शामिल हैं.
उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं. सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. यह विस्फोट 29 सितम्बर 2008 को महाराष्ट्र के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील शहर मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने के दौरान और नवरात्रि से ठीक पहले हुआ था.
विस्फोट में छह लोगों की जान चली गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए. एक दशक लंबे मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए. प्रारंभिक जांच की भूमिका महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने निभाई थी.
आरोपी सुधाकर धर द्विवेदी के वकील रंजीत सांगले ने कहा, ’17 साल की लंबी देरी के बाद, 323 गवाहों के बयानों, 40 गवाहों के मुकरने, 40 महत्वपूर्ण गवाहों के बयान रद्द होने और 40 अन्य गवाहों की जान जाने के बाद आज न्याय होगा. अदालत न्याय करेगी. हमारे खिलाफ कोई सबूत नहीं था. सभी आरोपी बरी हो जाएँगे.’