गाजियाबाद: कवि नगर में श्री धार्मिक रामलीला कमेटी की तरफ से आयोजित रामलीला इस साल एक नई मिसाल बनी है. कवि नगर रामलीला में अभिनय कर रहे प्रमुख कलाकार अपने-अपने क्षेत्र में प्रोफेशनल हैं. कोई पैथोलॉजिस्ट है तो कोई आईटी कंपनी में इंजीनियर है. अपनी नौकरी के बीच यह तमाम लोग समय निकालकर मंच पर अपने जुनून को पूरा कर रहे हैं.
भगवान राम का किरदार निभा रहे राजीव राज गुप्ता ने एमबीए की पढ़ाई की है. कॉर्पोरेट में अच्छी नौकरी मिल रही थी, लेकिन उनकी रुचि थिएटर में थी. राजीव गुप्ता फुल टाइम थिएटर आर्टिस्ट अभिनेता और निर्देशक हैं. वह संस्कृति थिएटर ग्रुप चलाते हैं. संस्कृति थिएटर ग्रुप की तरफ से ही कवि नगर रामलीला में मंचन की जिम्मेदारी संभाली जा रही है. वह भगवान राम का किरदार निभाने के साथ-साथ निर्देशक की भी भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कहा, राम का किरदार निभाना मेरे लिए अभिनय नहीं बल्कि तपस्या है. भगवान राम की भूमिका निभाने के साथ-साथ निर्देशन करना काफी चुनौतीपूर्ण है. लेकिन, सब राम जी के आशीर्वाद से संभव हो जाता है.
वहीं माता सीता का किरदार निभा अनुष्का यादव ने हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन पूरा किया है और वह मॉडलिंग के क्षेत्र में हैं. जब मंचन के लिए मंच पर उतरती है तो कुछ पल के लिए भीड़ शांत हो जाती है. थिएटर से उनका गहरा रिश्ता है. उन्होंने कहा कि मां सीता का किरदार निभाने आसान नहीं है. यहां सिर्फ डायलॉग बोलना नहीं बल्कि उनकी पीड़ा और त्याग को महसूस करना होता है.
उनके अलावा रावण का किरदार निभा रहे अंशु सिंह पेशे से सर्वर इंजीनियर हैं और जापान की एक प्रतिष्ठित आईटी कंपनी में नौकरी करते हैं. फिलहाल उनका वर्क फ्रॉम होम चल रहा है. दोपहर 2 अंशु सिंह की शिफ्ट खत्म होती है और 3 बजे वह रामलीला में पहुंच जाते हैं. तकरीबन 4 घंटे का वक्त मंचन की तैयारी और रिहर्सल में लगता है. उन्होंने बताया, जब मंचन करने पहुंचता हूं तो कुछ वक्त के लिए भूल जाता हूं कि मैं सर्वर इंजीनियर हूं. मंच पर पहुंचने के बाद मैं खुद को सिर्फ थिएटर आर्टिस्ट मानता हूं. रावण का किरदार निभाना मुश्किल है, लेकिन टीम के सहयोग से सब संभव हो पाता है.
वहीं लक्ष्मी का किरदार निभा रही निशा गुप्ता दिल्ली एम्स के पैथोलॉजी विभाग में कार्यरत हैं. पेशेवर जीवन की व्यस्तता के बावजूद निशा मंचन करने के लिए वक्त से कवि नगर रामलीला पहुंचती है. एम्स से कवि नगर पहुंचने में तकरीबन एक घंटे का वक्त लगता है. इस बीच रास्ते में वह डायलॉग आदि का रिहर्सल करती हैं. वह कहती हैं, अस्पताल और मंच दोनों की जिम्मेदारी के बीच तालमेल बिठाना कई बार चुनौतीपूर्ण होता है. कई बार थकान बहुत ज्यादा हो जाती है, लेकिन रामलीला में मंचन करने के बाद एक अलग ही ऊर्जा मिलती है.